घोरकष्टोधरणस्तोत्रम | घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र ओवी सह| Ghorkashtodharan Stotra |
घोरकष्टोधरणस्तोत्रम | घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र ओवी सह| Ghorkashtodharan Stotra | 108 Times| With Lyrics
श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वम् सदैव । श्रीदत्तास्मान्पाहि देवाधिदेव ।। भावग्राह्य क्लेशहारिन्सुकीर्ते । घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते ।। १।। त्वम् नो माता त्वम् पिताऽऽप्तोऽधिपस्त्वम् । त्राता योगक्षेमकृत्सद्गुरुस्त्वम् ।। त्वम् सर्वस्वम् नोऽप्रभो विश्वमूर्ते । घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते ।। २।। पापम् तापम् व्याधिमाधिम् च दैन्यम् । भीतिम् क्लेशम् त्वम् हराऽऽशु त्वदन्यम् ।। त्रातारम् नो वीक्ष्य ईशास्तजूर्ते । घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते ।। ३।। नान्यस्त्राता नापि दाता न भर्ता । त्वत्तो देव त्वम् शरण्योऽकहर्ता ।। कुर्वात्रेयानुग्रहम् पूर्णराते । घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते ।। ४।। धर्मे प्रीतिम् सन्मतिम् देवभक्तिम् । सत्संगाप्तिम् देहि भुक्तिम् च मुक्तिम् । भावासक्तिम् चाखिलानन्दमूर्ते । घोरात्कष्टादुद्धरास्मान्नमस्ते ।। ५।। श्लोकपंचकमेततद्यो लोकमङ्गलवर्धनम् । प्रपठेन्नियतो भक्त्या स श्रीदत्तप्रियो भवेत् ॥ ६॥ इति परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रीवासुदेवानन्द सरस्वती (टेंबे) स्वामीमहाराज विरचितं घोरकष्टोधरणस्तोत्रम सम्पूर्णम् ।। || अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त || || अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त || || अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त ||
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